शायर अकील पैकर 'हाथ में पत्थर लिए हर आदमी तैयार है, आइना बनकर रहना अब बहुत दुश्वार है, जो शहीदान-ए-वतन हैं, खाक में हैं जरूर, नाम उनका तारीख में आज भी अनवार है।'
युवा शायर मोहम्मद वाफी 'ऐ कौम की बेटी मुझे इसका जवाब दो, गैरों में तेरी शर्म हया कैसे बंट गयी।'
शायरा चांदनी शबनम 'जिसको छुपाकर रखा था मैने जहान से, वो बात कहां से खुलकर सरे आम हो गयी।'
युवा शायर मोहम्मद वाफी 'ऐ कौम की बेटी मुझे इसका जवाब दो, गैरों में तेरी शर्म हया कैसे बंट गयी।'
शायरा चांदनी शबनम 'जिसको छुपाकर रखा था मैने जहान से, वो बात कहां से खुलकर सरे आम हो गयी।'
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