अमरत्व के नाथ
मान्यता है कि पार्वती को अमरत्व की कथा सुनाने के लिए शिव ने जिस निर्जन स्थल का चयन किया था, वही अमरनाथ गुफा है। आज से अमरनाथ यात्रा आरंभ हो रही है, इस अवसर पर जानिए इस यात्रा का माहात्म्य..
एक पौराणिक आख्यान है कि मां पार्वती ने एक बार भगवान शिव से उनके मुंडमाला पहनने का कारण पूछा। शिव ने कहा, 'जब भी तुम जन्म लेती हो, मैं इसमें एक मुंड और जोड़ लेता हूं।' इस पर पार्वती सोचने लगीं कि साक्षात शक्ति होते हुए भी मुझे बार-बार जन्म लेना पड़ता है, परंतु भगवान शिव अजर-अमर हैं। मां पार्वती शिव से उनके अमरत्व का रहस्य जानने को व्याकुल हो उठीं। भगवान शिव नहीं चाहते थे कि उनके अलावा कोई और अमरत्व के रहस्य सुने, इसलिए वे ऐसे निर्जन स्थान की तलाश करने लगे, जहां कोई न हो। तब उन्हें मिली अमरनाथ गुफा। इस बार अमरनाथ यात्रा 29 जून से शुरू होकर श्रावण पूर्णिमा अर्थात 13 अगस्त तक चलेगी।
भौगोलिक स्थिति
समुद्र तल से 13600 फीट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। 16 मीटर चौड़ी और लगभग 11 मीटर लंबी यह गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। गुफा में बनने वाला पवित्र हिमलिंग शुक्ल पक्ष के दौरान बढ़ने लगता है, जबकि कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के आकार के साथ ही इसका आकार भी घटने लगता है।
ऐतिहासिक महत्व
कल्हण की ऐतिहासिक पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ गुफा का उल्लेख मिलता है। इसका अस्तित्व 12वीं सदी से पहले का माना जाता है, परंतु मौजूदा दौर में इसकी खोज मुसलमान गड़रिये बूटा मलिक ने की थी। उसने सर्वप्रथम इस गुफा में प्राकृतिक हिमलिंग बनने की खबर सबको दी। आज तक बूटा मलिक के परिवार को अमरनाथ पर चढ़ने वाले चढ़ावे का एक हिस्सा दिया जाता है।
आध्यात्मिक आभास
सावन के महीने में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। आस्था, उल्लास, उत्सव और सेवा का समागम एक साथ दिखाई देता है। यात्रा शुरू होने से पहले ही मंदिरों का शहर जम्मू साधुओं का डेरा बन जाता है।
यात्रा मार्ग
यात्रा जम्मू से शुरू होती है। इसके दो मार्ग हैं। पहला मार्ग पहलगाम से, तो दूसरा बालटाल से शुरू होता है। श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड यात्रियों की सुरक्षा और सुगमता के लिए पहलगाम मार्ग से यात्रा करने की सलाह देता है। यह मार्ग लंबा, परंतु बालटाल की तुलना में कम जोखिम भरा है।
जम्मू से पहलगाम 315 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां एसआरटीसी की बसों और निजी टैक्सियों से पहुंचा जा सकता है। पहलगाम से चंदनबाड़ी 16 किलोमीटर, चंदनबाड़ी से पिस्सु टॉप 3 किलोमीटर, पिस्सु टॉप से शेषनाग 9 किलोमीटर, शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर और पंचतरणी से गुफा का रास्ता 6 किलोमीटर का है।
वहीं, दूसरे मार्ग में जम्मू से ऊधमपुर, काजीगुंड, अनंतनाग, श्रीनगर और सोनमर्ग होते हुए बालटाल पहुंचा जा सकता है। बालटाल से पवित्र गुफा महज 14 किलोमीटर की दूरी पर है। बालटाल से 2 किलोमीटर पर दोमेल, दोमेल से 5 किलोमीटर पर बरारी मार्ग, यहां से संगम 4 किलोमीटर और संगम से गुफा मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सद्भाव का संगम
श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की सदस्य प्रो. वेद कुमारी घई अमरनाथ यात्रा पर दिखने वाले धार्मिक सद्भाव से अभिभूत हैं। वे कहती हैं, 'यात्रा से जुड़े लोगों का धार्मिक सद्भाव देखकर मुझे बहुत खुशी होती है। वे चाहे पालकी और घोड़े वाले हों या फिर वहां टेंट लगाने और कंबल बांटने वाले, सभी अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था देख रहे होते हैं। हालांकि वे सभी दूसरे धर्म के लोग होते हैं, लेकिन वे भी वर्ष भर इस यात्रा का इंतजार करते हैं।'
[जम्मू से योगिता यादव]
हर इंसान में दिखे भगवान
जम्मू निवासी ऋतु शर्मा अमरनाथ यात्रा के संदर्भ में अपने अनुभव बांटते हुए भावुक हो जाती हैं, वे कहती हैं, 'वर्ष 2009 में हम आठ लोग यात्रा के लिए निकले थे। हमने गलती यह की कि आधिकारिक यात्रा शुरू होने से पहले ही यात्रा पर निकल पड़े। हमें बालटाल में एक और समूह मिलने वाला था। उसी के पास हमारे कंबलों, खाने, बिस्तर आदि का इंतजाम था। यूं समझिए कि हम बिना किसी तैयारी के खाली हाथ यात्रा पर निकल पड़े थे। बालटाल पहुंचने से पहले ही रात के 11 बज गए। सेना ने वहां बैरियर लगाया हुआ था। उन्होंने हमें बैरियर से आगे नहीं जाने दिया। तापमान शून्य के आसपास था। ठंड से हम ठिठुर रहे थे। हमारे पास न खाना था न पानी। एक-दूसरे को दोष देने के अलावा हम और कुछ नहीं कर पा रहे थे। पुरुष तो सोने की तैयारी करने लगे, लेकिन हम तीनों औरतों को डर, ठंड और भूख के कारण नींद नहीं आ रही थी। दूर तक फैला सुनसान अंधेरा हमें और भी डरा रहा था। इतने में दूर से हेडलाइट चमकती हुई नजर आई। एक ट्रक आ रहा था। सेना के जवान ने उसे भी बैरियर पर रोक दिया। दूर से हमें सिर्फ इतना समझ आ रहा था कि वे लोग भी आगे जाने की गुजारिश कर रहे हैं, पर उन्हें आगे नहीं जाने दिया जा रहा। और फिर ट्रक वहीं साइड में रुक गया। पहले तो हमें डर लगा, लेकिन फिर ट्रक से एक-एक कर सामान उतरने लगा और आवाज आने लगी, 'आओ जी आओ.. लंगर लग गया.. पहिले भगतां नूं खिलाओ.. आओ जी आओ..' ट्रक से उतरे आदमियों ने टाट बिछाई, कड़ाही-पतीले उतारे, वहीं चूल्हा जलाया और सब दौड़-दौड़कर अपने-अपने काम में लग गए। उस सुनसान, कंपा देने वाली रात में जहां हम बिल्कुल खाली हाथ थे, वहां हमने आलू-मटर की सब्जी और गर्मागर्म पूड़ियां खाई। हमारी सेवा में लगा हर आदमी मुझे भगवान शिव का अवतार लग रहा था। उस रात मुझे लगा कि हमें भेजने वाला भी वही था, रोकने वाला भी वही और अंत में हमारे लिए अन्न-पानी और बिस्तर देने वाला भी वही था। सुबह हमारे जागने से पहले ही वह ट्रक वहां से रवाना हो चुका था।'
एक पौराणिक आख्यान है कि मां पार्वती ने एक बार भगवान शिव से उनके मुंडमाला पहनने का कारण पूछा। शिव ने कहा, 'जब भी तुम जन्म लेती हो, मैं इसमें एक मुंड और जोड़ लेता हूं।' इस पर पार्वती सोचने लगीं कि साक्षात शक्ति होते हुए भी मुझे बार-बार जन्म लेना पड़ता है, परंतु भगवान शिव अजर-अमर हैं। मां पार्वती शिव से उनके अमरत्व का रहस्य जानने को व्याकुल हो उठीं। भगवान शिव नहीं चाहते थे कि उनके अलावा कोई और अमरत्व के रहस्य सुने, इसलिए वे ऐसे निर्जन स्थान की तलाश करने लगे, जहां कोई न हो। तब उन्हें मिली अमरनाथ गुफा। इस बार अमरनाथ यात्रा 29 जून से शुरू होकर श्रावण पूर्णिमा अर्थात 13 अगस्त तक चलेगी।
भौगोलिक स्थिति
समुद्र तल से 13600 फीट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। 16 मीटर चौड़ी और लगभग 11 मीटर लंबी यह गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। गुफा में बनने वाला पवित्र हिमलिंग शुक्ल पक्ष के दौरान बढ़ने लगता है, जबकि कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के आकार के साथ ही इसका आकार भी घटने लगता है।
ऐतिहासिक महत्व
कल्हण की ऐतिहासिक पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ गुफा का उल्लेख मिलता है। इसका अस्तित्व 12वीं सदी से पहले का माना जाता है, परंतु मौजूदा दौर में इसकी खोज मुसलमान गड़रिये बूटा मलिक ने की थी। उसने सर्वप्रथम इस गुफा में प्राकृतिक हिमलिंग बनने की खबर सबको दी। आज तक बूटा मलिक के परिवार को अमरनाथ पर चढ़ने वाले चढ़ावे का एक हिस्सा दिया जाता है।
आध्यात्मिक आभास
सावन के महीने में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। आस्था, उल्लास, उत्सव और सेवा का समागम एक साथ दिखाई देता है। यात्रा शुरू होने से पहले ही मंदिरों का शहर जम्मू साधुओं का डेरा बन जाता है।
यात्रा मार्ग
यात्रा जम्मू से शुरू होती है। इसके दो मार्ग हैं। पहला मार्ग पहलगाम से, तो दूसरा बालटाल से शुरू होता है। श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड यात्रियों की सुरक्षा और सुगमता के लिए पहलगाम मार्ग से यात्रा करने की सलाह देता है। यह मार्ग लंबा, परंतु बालटाल की तुलना में कम जोखिम भरा है।
जम्मू से पहलगाम 315 किलोमीटर की दूरी पर है। जहां एसआरटीसी की बसों और निजी टैक्सियों से पहुंचा जा सकता है। पहलगाम से चंदनबाड़ी 16 किलोमीटर, चंदनबाड़ी से पिस्सु टॉप 3 किलोमीटर, पिस्सु टॉप से शेषनाग 9 किलोमीटर, शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर और पंचतरणी से गुफा का रास्ता 6 किलोमीटर का है।
वहीं, दूसरे मार्ग में जम्मू से ऊधमपुर, काजीगुंड, अनंतनाग, श्रीनगर और सोनमर्ग होते हुए बालटाल पहुंचा जा सकता है। बालटाल से पवित्र गुफा महज 14 किलोमीटर की दूरी पर है। बालटाल से 2 किलोमीटर पर दोमेल, दोमेल से 5 किलोमीटर पर बरारी मार्ग, यहां से संगम 4 किलोमीटर और संगम से गुफा मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सद्भाव का संगम
श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की सदस्य प्रो. वेद कुमारी घई अमरनाथ यात्रा पर दिखने वाले धार्मिक सद्भाव से अभिभूत हैं। वे कहती हैं, 'यात्रा से जुड़े लोगों का धार्मिक सद्भाव देखकर मुझे बहुत खुशी होती है। वे चाहे पालकी और घोड़े वाले हों या फिर वहां टेंट लगाने और कंबल बांटने वाले, सभी अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था देख रहे होते हैं। हालांकि वे सभी दूसरे धर्म के लोग होते हैं, लेकिन वे भी वर्ष भर इस यात्रा का इंतजार करते हैं।'
[जम्मू से योगिता यादव]
हर इंसान में दिखे भगवान
जम्मू निवासी ऋतु शर्मा अमरनाथ यात्रा के संदर्भ में अपने अनुभव बांटते हुए भावुक हो जाती हैं, वे कहती हैं, 'वर्ष 2009 में हम आठ लोग यात्रा के लिए निकले थे। हमने गलती यह की कि आधिकारिक यात्रा शुरू होने से पहले ही यात्रा पर निकल पड़े। हमें बालटाल में एक और समूह मिलने वाला था। उसी के पास हमारे कंबलों, खाने, बिस्तर आदि का इंतजाम था। यूं समझिए कि हम बिना किसी तैयारी के खाली हाथ यात्रा पर निकल पड़े थे। बालटाल पहुंचने से पहले ही रात के 11 बज गए। सेना ने वहां बैरियर लगाया हुआ था। उन्होंने हमें बैरियर से आगे नहीं जाने दिया। तापमान शून्य के आसपास था। ठंड से हम ठिठुर रहे थे। हमारे पास न खाना था न पानी। एक-दूसरे को दोष देने के अलावा हम और कुछ नहीं कर पा रहे थे। पुरुष तो सोने की तैयारी करने लगे, लेकिन हम तीनों औरतों को डर, ठंड और भूख के कारण नींद नहीं आ रही थी। दूर तक फैला सुनसान अंधेरा हमें और भी डरा रहा था। इतने में दूर से हेडलाइट चमकती हुई नजर आई। एक ट्रक आ रहा था। सेना के जवान ने उसे भी बैरियर पर रोक दिया। दूर से हमें सिर्फ इतना समझ आ रहा था कि वे लोग भी आगे जाने की गुजारिश कर रहे हैं, पर उन्हें आगे नहीं जाने दिया जा रहा। और फिर ट्रक वहीं साइड में रुक गया। पहले तो हमें डर लगा, लेकिन फिर ट्रक से एक-एक कर सामान उतरने लगा और आवाज आने लगी, 'आओ जी आओ.. लंगर लग गया.. पहिले भगतां नूं खिलाओ.. आओ जी आओ..' ट्रक से उतरे आदमियों ने टाट बिछाई, कड़ाही-पतीले उतारे, वहीं चूल्हा जलाया और सब दौड़-दौड़कर अपने-अपने काम में लग गए। उस सुनसान, कंपा देने वाली रात में जहां हम बिल्कुल खाली हाथ थे, वहां हमने आलू-मटर की सब्जी और गर्मागर्म पूड़ियां खाई। हमारी सेवा में लगा हर आदमी मुझे भगवान शिव का अवतार लग रहा था। उस रात मुझे लगा कि हमें भेजने वाला भी वही था, रोकने वाला भी वही और अंत में हमारे लिए अन्न-पानी और बिस्तर देने वाला भी वही था। सुबह हमारे जागने से पहले ही वह ट्रक वहां से रवाना हो चुका था।'
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