बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

दीपावली

 हमारे ऋषियों ने "तमसो मा ज्योतिर्गमय"

  'अप्प दीपो भव' यानी स्वय अपना दीपक बनो। बुद्ध

  'मधुर मधुर मेरे दीपक जल/ प्रियतम का पथ आलोकित कर।'
'इस अंध तम-जाल पर रश्मि की बेल के/ स्वर्ण के फूल खिल जायें, लहरायें/मन की तिमिर राशि वन के कुसुम-हास में घुल, वनश्री विभा में बदल जायें।' -महादेवी वर्मा  

 'है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।' 
 'दिखलाई देता कुछ कुछ मग/ जिस पर शकित हो चलते पग/ दूरी पर जो चीजें उनमें केवल दीप नजर आता है/ अंधकार बढ़ता जाता है।' -बच्चन 

'मेरे पथ के दीपक पावन मेरा अंतर आलोकित कर/ यदि तू जलता बाहर/ उन्मन/ अधिक प्रखर जल मेरे अंदर।' -गजानन माधव मुक्तिबोध

देहरी पर दिया/ बाट गया प्रकाश/ कुछ भीतर कुछ बाहर/ बट गया हिया- कुछ गेही, कुछ यायावर/ हवा का हल्का झोंका/ कुछ सिमट, कुछ बिखर गया/ लौ काप कर थिर हुई: मैं सिहर गया।

'दीप बुझेगा पर दीपन की स्मृति को कहा बुझाओगे।
 मैं मिट्टी का दीपक/ मैं ही हू उसमें जलने का तेल मैं ही हूं दीपक की बत्ती/ कैसा है यह विधि का खेल।-अज्ञेय

  'तन का दिया प्राण की बाती/ दीपक जलता रहा रात भर।' -गोपाल सिह नेपाली 

 'जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना/ अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।' =नीरज

 इस नदी की धार से ठडी हवा आती तो है/ नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है/ एक चिगारी कहीं से ढूढ़ लाओ दोस्तों/ इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।-दुष्यत कुमार

 दुबली विधवा जैसी लौ की गठरी लेकर कोने में गल रही उदास'

'जहा प्रकाशपुंज की सपनीली आभा है/ थोड़ा सा प्रकाश/ अपनी अंजुरी में भर कर लौट आती हू/ अपने नीड़ पर फैला देती हू उसे।'

 के इस कथन में शायद इसीलिए अफसोस की एक दूसरी बानगी दृष्टिगत होती है- 'कभी मेरा भी अपना कद था और थी एक जमीन/ नहीं भुरभुरी जिसके नीचे की मिट्टी/ क्या करेगा कोई विश्वास/ एक विराट ज्योति लील गयी मेरी नन्हीं लौ।' -युवा कवि मोहनकुमार डेहरिया

 'मैं कम उजाले में भी पढ़ लिख लेता हू/ अपने दीगर काम मजे में निपटा लेता हू/ सिर्फ इतने जतन से/ कल के लिए कुछ रोशनी बचा लेता हू।'-कवि लीलाधर मडलोई 

'चलो कि टूटे हुओं को जोड़े/ जमाने से रूठे हुओं को मोड़े/ अंधेरे में इक दिया तो बालें/ हम आधियों का गुरूर तोड़े/ धरा पे लिख दें हवा से कह दें/ है महगी नफरत औ' प्यार सस्ता।' -डा. ओम निश्चल,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


पश्चिम तरफ से आवासीय परिसर का एक दृश्य

कुल पेज दृश्य

9399

KUTIBELSANI

BELSANI IS THE NAME OF VILLAGE AND KUTI IS THE NAME OF THE PLACE WHERE I WAS BORN. THIS SPECIFIC PLACE ON THE PLANET EARTH IS ENRICHED BY THE SADHANA OF MY GRAND FATHER FREEDOM FIGHTER LATE SHRI MAHANGU DHANROOP SINGH JEE.

परम पूज्य बाबाजी "कुटी"

परम पूज्य बाबाजी "कुटी"
श्रीयुत महंगू धनरूप सिंहजी "स्वतंन्त्रता संग्राम सेनानी"

MAIN GATE

MAIN GATE
NAME PLATE

डा. आर. बी. सिंह

डा. आर. बी. सिंह
बखरी के मोहारे से बाहर देखते हुए अन्दर जाना

गाँव स्थित आवासीय परिसर "कुटी" का प्रथम प्रवेश द्वार

गाँव स्थित आवासीय परिसर "कुटी" का प्रथम प्रवेश द्वार
पूज्य पिता प्रो. जीत बहादुर सिंह द्वारा इसका निर्माण कराया गया |