हर श्वास में ऊँ | ||||||
ऊँका ही दूसरा नाम प्रणव (परमेश्वर) है। योगदर्शन के अनुसार तस्य वाचक: प्रणव: अर्थात उस ईश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ऊँएवं ब्रह्ममें कोई भेद नहीं है। ऊँअक्षर है, इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता। छांदोग्योपनिषदमें कहा गया है--ऊँ इत्येतत्अक्षर:, अर्थात् ऊँअविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है। ऊँ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषाथरें का प्रदायक है। मात्र ऊँका जाप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली। माना जाता है कि कौशीतकीऋषि निस्संतान थे। संतान-प्राप्ति के लिए उन्होंने सूर्य का ध्यान कर ऊँका जाप किया, तो उन्हें पुत्र-प्राप्ति हो गई। गोपथ ब्राह्मणमें उल्लेख है कि जो कुश के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हजार बार ऊँरूपी मंत्र का जाप करता है, उसके समस्त अर्थ और काम सिद्ध हो जाते हैं-सिद्धयंति अस्यअर्था:सर्वकर्माणिच।श्रीमद्भागवत में ऊँके महत्व को कई बार रेखांकित किया गया है। गीता के आठवें अध्याय में यह उल्लेख मिलता है कि जो ऊँअक्षर रूप ब्रह्मका उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है- ऊँअर्थात ओम तीन अक्षरों से बना है। ये तीन अक्षर हैं अ,उएवं म।अका अर्थ है आविर्भाव या उत्पन्न होना, उका तात्पर्य है उठना, उडना अर्थात विकास, मका मतलब है मौन हो जाना अर्थात ब्रह्मलीन हो जाना। ऊंसंपूर्ण ब्रह्मांडकी उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ऊंमें प्रयुक्त अतो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है, वहीं उउडने का अर्थ देता है, जिसका मतलब है ऊर्जा-सम्पन्न होना। किसी ऊर्जावान मंदिर या तीर्थस्थलजाने पर वहां की अगाध ऊर्जा ग्रहण करने के बाद व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को आकाश में उडता हुआ देखता है। मौन हो जाने का अपना महत्व है। मौन का महत्व ज्ञानियोंने बताया ही है। अंग्रेजी में उक्ति है-साइलेंस इजसिल्वर ऐंडएब्सल्यूटसाइलेंसइजगोल्ड। गीता में श्रीकृष्ण ने मौन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए स्वयं को मौन का ही पर्याय बताया है-मौनं चैवास्मिगुह्यानां।वहीं दार्शनिकोंका मानना है कि अधिक बोलने से शारीरिक और मानसिक दोनों शक्तियों का क्षय होता है। ध्यान बिंदुपनिषद्के अनुसार, ऊँमंत्र की विशेषता यह है कि पवित्र या अपवित्र सभी स्थितियों में जो इसका जाप करता है, उसे लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होती है। जिस तरह कमल-पत्र पर जल नहीं ठहरता है, ठीक उसी तरह जप-कर्ता पर कोई कलुष नहीं लगता। सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनों में भी ऊँको महत्व प्राप्त है। बौद्ध दर्शन में ऊँ मणिपेऽहुमका प्रयोग जाप एवं उपासना के लिए प्रचुरतासे होता है। इस मंत्र के अनुसार, ऊँको मणिपुर चक्र में अवस्थितमाना जाता है। यह चक्र दस दल वाले कमल के समान है। जैन दर्शन में भी ऊँके महत्व को दर्शाया गया है। कबीर निर्गुण संत एवं कवि थे। उन्होंने भी ऊँके महत्व को स्वीकारा और इस पर साखियांभी लिखीं। उनकी एक साखी यहां दी जा रही है- ओ ओंकार आदि में जाना। लिखिऔमेंटेताहि न माना। ओ ओंकार लिखैजो कोई। सोई लखिमेटणान होई।। गुरुनानक ने ऊँके महत्व को प्रतिपादित करते हुए लिखा- ओम सतनाम कर्ता पुरुष निर्भोनिर्बेरअकालमूर्त।-ऊँ सत्य नाम जपने वाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं अकाल-पुरुष के सदृश हो जाता है। इस तरह ऊँके महत्व को सभी संप्रदाय के धर्म-गुरुओं, उपासकों, चिंतकों ने प्रतिपादित किया है, क्योंकि यह एकाक्षरीमंत्र साधना में सरल है और फल प्रदान करने में सर्वश्रेष्ठ। यह ब्रह्मांडका नाद है एवं मनुष्य के अंतर में स्थित ईश्वर का प्रतीक। किसी भी मंत्र के पहले ऊँजोडने से वह शक्तिसंपन्न हो जाता है। एक बार ऊँका जाप हजार बार किसी मंत्र के जाप से अधिक महत्वपूर्ण है। ऊँअर्थात ओम तीन अक्षरों से बना है। ये तीन अक्षर हैं अ,उएवं म।अका अर्थ है आविर्भाव, उका तात्पर्य है उठना या उडना, मका मतलब है मौन हो जाना। [डॉ.भगवतीशरण मिश्र]
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मेरे पूज्य बाबा, साहसी-शक्तिशाली-मेधावी-संत पुरुष स्व. ठाकुर महंगू धनरूप सिंह जी "स्वतंत्रता संग्राम सेनानी" (कुटी)के हाथो से अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में फिर से निर्मित(१९४२ में अंग्रेजो द्वारा घर जलाये जाने के कारण)यह कुटी(घर) मेरा जन्म स्थान है. उनकी साधना से यहाँ का कण कण पवित्र व पूजनीय है. अति हरि कृपा जाहि पर होई. पाऊ देई एहि मारग सोई. Dr. R. B. Singh, Village-Belsani,P.O.-Khaparaha Bajar Distt. Jaunpur (U.P.) INDIA
रविवार, 1 मई 2011
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पश्चिम तरफ से आवासीय परिसर का एक दृश्य
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KUTIBELSANI
BELSANI IS THE NAME OF VILLAGE AND KUTI IS THE NAME OF THE PLACE WHERE I WAS BORN. THIS SPECIFIC PLACE ON THE PLANET EARTH IS ENRICHED BY THE SADHANA OF MY GRAND FATHER FREEDOM FIGHTER LATE SHRI MAHANGU DHANROOP SINGH JEE.
परम पूज्य बाबाजी "कुटी"

श्रीयुत महंगू धनरूप सिंहजी "स्वतंन्त्रता संग्राम सेनानी"
MAIN GATE
NAME PLATE
डा. आर. बी. सिंह
बखरी के मोहारे से बाहर देखते हुए अन्दर जाना
गाँव स्थित आवासीय परिसर "कुटी" का प्रथम प्रवेश द्वार
पूज्य पिता प्रो. जीत बहादुर सिंह द्वारा इसका निर्माण कराया गया |
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